क्यूआर कोड से क्लैरिटी तक: छोटे बदलाव, बड़ी क्रांति : राकेश स्वामी

Opinion

2015 में शुरू हुई डिजिटल इंडिया पहल ने भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे को एक नई दिशा दी।

आज हम जिस डिजिटल क्रांति को जी रहे हैं, उसमें हर व्यक्ति की जेब में इंटरनेट, हर हाथ में स्मार्टफोन और हर दुकान पर क्यूआर कोड है। खासकर यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के साथ, क्यूआर कोड ने हमारे लेन-देन की भाषा बदल दी है।

2023–24 में 100 अरब से अधिक यूपीआई ट्रांजेक्शन ने यह साबित कर दिया कि डिजिटल भुगतान अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि दिनचर्या बन गया है। खास बात यह है कि इसकी पहुंच सिर्फ बड़े व्यापारों तक सीमित नहीं रही, बल्कि छोटे दुकानदारों और असंगठित क्षेत्रों तक भी इसकी पैठ बन चुकी है।

अब क्यूआर कोड सिर्फ पेमेंट का जरिया नहीं, बल्कि जानकारी और पारदर्शिता का टूल बन चुका है। दवा की बोतल हो या पैक्ड फूड का डिब्बा, क्यूआर कोड अब हर जगह नज़र आता है। भारत आज दुनिया में सबसे ज्यादा क्यूआर कोड स्कैन करने वाले देशों में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है — और यह किसी प्रचार का नतीजा नहीं, बल्कि उपयोगिता से प्रेरित परिवर्तन है।


कानून में डिजिटल का समावेश: एक बड़ी पहल

16 अगस्त 2024 को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने कीटनाशक नियमों में बड़ा बदलाव प्रस्तावित किया। कीटनाशक (चौथा संशोधन) नियम, 2024 के तहत घरेलू उपयोग वाले कीटनाशकों की लाइसेंसिंग प्रक्रिया को आसान और डिजिटल टूल्स के ज़रिए ज्यादा पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है।

इस प्रस्ताव में:

  • लाइसेंस रिन्युअल की अनिवार्यता खत्म करने,

  • आवेदन की समय-सीमा 90 से घटाकर 30 दिन करने,

  • और खासतौर पर पैकेजिंग पर क्यूआर कोड को अनिवार्य करने की बात शामिल है।

यह क्यूआर कोड उपभोक्ता को सीधे उस वेबसाइट तक ले जाएगा, जहां उत्पाद से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध होगी — घटक, सुरक्षित उपयोग, सावधानियां, और कंपनी की प्रमाणिक जानकारी।


पर्यावरण और उपयोगिता दोनों का समाधान

भारत में हर साल 1.45 लाख मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा कागज और कार्डबोर्ड का होता है। लेकिन इनका केवल 30% ही रीसायकल हो पाता है, जबकि वैश्विक औसत 58% है।

ऐसे में क्यूआर कोड एक स्मार्ट विकल्प के रूप में उभरा है —
✔️ न छपाई की बार-बार की लागत,
✔️ न कागज का ज़र unnecessary उपयोग,
✔️ और न ही अपडेट करने में कोई बाधा।

जहां पुराने पैकेज पर प्रिंटेड इंसर्ट्स जल्दी गुम या अप्रासंगिक हो जाते हैं, वहीं क्यूआर कोड एक "लाइव डॉक्युमेंट" की तरह काम करता है जिसे कभी भी अपडेट किया जा सकता है।


निर्माताओं के लिए भी फायदेमंद

डिजिटल क्यूआर कोड अपनाने से कंपनियों को फिजिकल मटीरियल की छपाई और वितरण पर खर्च कम करना पड़ता है। यह बचत वे R&D, गुणवत्ता नियंत्रण या उपभोक्ता जागरूकता अभियानों में लगा सकते हैं। इसके साथ ही, नियामक निकाय किसी उत्पाद को तत्काल अपडेट या वापस बुला सकते हैं — केवल डिजिटल डेटा में बदलाव करके।


अन्य क्षेत्रों में भी हो सकता है विस्तार

यह मॉडल केवल कीटनाशकों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। FMCG, फार्मा, एजुकेशन, यहां तक कि रियल एस्टेट और सार्वजनिक परिवहन जैसे सेक्टरों में भी QR कोड आधारित सूचना प्रणाली को लागू किया जा सकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे विभाग इसे अपनाकर उपभोक्ताओं को उत्पाद की ट्रैसेबिलिटी और विश्वसनीयता की सुविधा दे सकते हैं।


यह सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, एक सोच है

डिजिटलीकरण केवल एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि गवर्नेंस और उपभोक्ता इंटरफेस का एक नया मॉडल है। अब जानकारी स्थिर लेबल या पेपर इंसर्ट्स तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि रीयल-टाइम और प्रमाणित रूप में एक क्लिक पर उपलब्ध होगी।

QR कोड से पारदर्शिता, जवाबदेही और स्थायित्व — ये सब एक साथ मुमकिन हैं।


निष्कर्ष: परिवर्तन की दिशा में एक ठोस कदम

जो बदलाव आज हमें छोटे लगते हैं — जैसे पैकेज पर एक छोटा क्यूआर कोड — वही आने वाले समय में बड़ी क्रांति के वाहक बनेंगे। ये पहल दिखाती है कि भारत बिना भारी खर्च किए भी अपनी रेगुलेटरी व्यवस्था को आधुनिक, पारदर्शी और लोगों के लिए अधिक उपयोगी बना सकता है।

यह सिर्फ कोड नहीं, उपभोक्ता की क्लैरिटी की कुंजी है — एक इंच की स्कैनिंग से पूरे सिस्टम में भरोसा बढ़ाने वाला बदलाव।

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