क्यों मनाई जाती है महावीर जयंती? जानें इसका महत्व

Dharm Desk

चैत्र महीने की त्रयोदशी (तेरहवीं) तिथि को मनाई जाने वाली महावीर जयंती की तिथि हर वर्ष बदलती रहती है। इस वर्ष यह पर्व 10 अप्रैल को मनाया जा रहा है।

महावीर जयंती, जैन धर्म के अंतिम और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की स्मृति में मनाई जाती है। यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र और शुभ होता है। भगवान महावीर ने "जियो और जीने दो" का संदेश दिया और बताया कि आत्मा ही परम सत्य है। उन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए अहिंसा, संयम और तपस्या को आवश्यक बताया।
 
कौन थे महावीर?
भगवान महावीर, जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म 599 ईसा पूर्व (लगभग 2624 वर्ष पूर्व) बिहार के कुंडलग्राम में हुआ था, जो वर्तमान में वैशाली जिले में स्थित है। उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम रानी त्रिशला था। बचपन में उनका नाम वर्धमान रखा गया था, क्योंकि वे बल, बुद्धि और साहस में बढ़ते रहे।
 
महावीर कैसे कहलाए?
भगवान महावीर के जन्म से पहले ही यह भविष्यवाणी की गई थी कि वे या तो एक महान सम्राट बनेंगे या राजपाट त्याग कर तपस्वी बनेंगे। उनके माता-पिता ने उन्हें गृहस्थ जीवन में रमाने के लिए विवाह कराया, पुत्र भी हुआ, परंतु वर्धमान का मन सांसारिक जीवन में कभी नहीं रमा। वे सदैव आत्मचिंतन में लीन रहते थे — "इस जीवन का अंतिम सत्य क्या है?" माता-पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सम्पूर्ण त्याग कर दिया और संसार से दूर तपस्या में लीन हो गए। 12 वर्षों की कठिन तपस्या के पश्चात उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई, और तभी से वे 'भगवान महावीर' कहलाए।
 
महावीर जयंती का महत्व
महावीर जयंती जैन समाज के लिए एक अत्यंत पवित्र और प्रेरणादायक पर्व है। भगवान महावीर ने अपने जीवन से जो पाँच मूल सिद्धांत दिए — अहिंसा (किसी को कष्ट न देना),  सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह (संपत्ति का लोभ न रखना),
वे आज भी समूची मानवता को सही मार्ग दिखाते हैं। इस दिन लोग उपवास, पूजा-पाठ, धर्म-प्रवचन और झांकी आयोजन करते हैं। महावीर स्वामी के जीवन और उपदेशों को स्मरण कर लोग आत्मशुद्धि, करुणा और संयम के पथ पर चलने की प्रेरणा लेते हैं। यह दिन केवल जन्म का उत्सव नहीं, बल्कि धर्म और आत्मबोध की जागृति का पर्व है।

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