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वन नीतियों पर पुनर्विचार जरूरी: सीएम बोले – “अभयारण्य बना, लोग उजड़े – यहीं से बढ़ा संकट”
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मध्यप्रदेश की राजधानी में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में वन संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और आदिवासी आजीविका जैसे अहम विषयों पर व्यापक मंथन हुआ।
यह कार्यशाला नरोन्हा प्रशासन अकादमी में संपन्न हुई, जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने संयुक्त रूप से किया।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्यमंत्री का बयान चर्चा का केंद्र बन गया। उन्होंने कहा,
“हमने टाइगर रिजर्व और अभयारण्य तो बना दिए, लेकिन उनकी सीमाएं तय करते समय सबसे पहले वहाँ रह रहे लोगों को हटाया गया। यही हमारी वर्तमान पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों की जड़ है।”
🌱 जनजातीय संस्कृति और सरकारी नीतियों में टकराव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने यह भी कहा कि आदिवासी समुदायों की जीवनशैली हमेशा से प्रकृति के साथ तालमेल में रही है, लेकिन कई बार सरकारी योजनाएं इनकी समस्याएं बढ़ा देती हैं। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि —
“क्या हम वास्तव में इन लोगों की मदद कर रहे हैं, या उनके लिए और बाधाएं खड़ी कर रहे हैं?”
🔍 कार्यशाला के तीन प्रमुख केंद्र बिंदु
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने बताया कि यह राष्ट्रीय कार्यशाला तीन मुख्य विषयों पर केंद्रित रही:
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नीतिगत सुधार: जैसे कि वन अधिकार अधिनियम और जैव विविधता कानून में संशोधन।
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संस्थागत विकास: ट्राइफेड और अन्य योजनाओं के माध्यम से आदिवासियों की आजीविका को सशक्त बनाना।
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प्रेरक उदाहरण: उन क्षेत्रों की कहानियाँ जहां वन उपज से समुदायों को आर्थिक संबल मिला।
🌿 पलायन और पारंपरिक संसाधनों की कमी
केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने कहा कि कई आदिवासी क्षेत्रों में पारंपरिक वन औषधियों और संसाधनों का तेजी से क्षरण हो रहा है, जिससे वहां के निवासियों के समक्ष पलायन जैसी स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि
“भारतीय ज्ञान परंपरा और आदिवासी संस्कृति को ही विकास का मूल आधार बनाना होगा।”
🔧 टेक्नोलॉजी, विकास और संरक्षण में संतुलन ज़रूरी
भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि भारत ने डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अहम स्थान बनाया है। आज हर वर्ग, चाहे वह आदिवासी हो या शहरी, तकनीक से जुड़ चुका है — ऐसे में विकास और प्रकृति के बीच संतुलन बनाना वक़्त की सबसे बड़ी मांग है।
यह कार्यशाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकसित भारत 2047’ विज़न के तहत एक अहम कदम मानी जा रही है, जिसका उद्देश्य वनों और जनजातीय समाज के योगदान को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा में लाना है।