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नए वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में गरमागरम बहस: सिब्बल से लेकर मेहता तक, जानिए किसने क्या कहा
JAGRAN DESK

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ संशोधन कानून-2025 को लेकर कई वरिष्ठ वकीलों और सरकार के वकील के बीच जोरदार बहस हुई।
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ संशोधन कानून-2025 को लेकर कई वरिष्ठ वकीलों और सरकार के वकील के बीच जोरदार बहस हुई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। सुनवाई के दौरान संविधान, धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार और प्रशासनिक प्रक्रिया को लेकर तीखी दलीलें सामने आईं।
🔴 कपिल सिब्बल ने क्या कहा
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जिन्होंने जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से पक्ष रखा, ने कहा:
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वक्फ पर्सनल लॉ का विषय है, इसमें राज्य का हस्तक्षेप अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है।
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वक्फ की नई परिभाषा (धारा 3(आर)) में 5 साल से इस्लाम का पालन करने की शर्त गैर-जरूरी और असंवैधानिक है।
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"वक्फ बाय यूजर" को हटाया जाना ऐतिहासिक और धार्मिक प्रथा पर हमला है।
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वक्फ संपत्ति विवाद का निर्णय सरकारी अधिकारी द्वारा लिया जाना न्यायिक प्रक्रिया की अनदेखी है।
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उन्होंने जामा मस्जिद का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसी संपत्तियों पर वक्फ की मान्यता खतरे में है।
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कलेक्टर द्वारा निर्णय लेना, सीमित समय सीमा और पंजीकरण की अनिवार्यता कई पुरानी वक्फ संपत्तियों को संकट में डालती है।
🔴 राजीव धवन और सिंघवी के तर्क
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राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लाम की धार्मिक व्यवस्था के मूल में हस्तक्षेप करता है।
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अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि "वक्फ बाय यूजर" की अवधारणा बहुत पुरानी है और इसे हटाना व्यावहारिक दृष्टि से अनुचित है।
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उन्होंने अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट से सीधा हस्तक्षेप मांगा और हाईकोर्ट भेजने की सलाह का विरोध किया।
🔴 अन्य वरिष्ठ वकीलों की दलीलें
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सीयू सिंह ने धार्मिक बनाम धर्मार्थ संपत्ति में अंतर पर ज़ोर दिया।
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संजय हेगड़े ने अमृतसर के उदाहरण से बताया कि धार्मिक ट्रस्टों पर समुदाय विशेष का नियंत्रण कितना अहम होता है।
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राजीव शकधर और हुजेफा अहमदी ने नए प्रावधानों से धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रभाव और 5 साल की ‘परीक्षा अवधि’ को अनुचित बताया।
🔴 सरकार की ओर से SG तुषार मेहता की प्रतिक्रिया
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मेहता ने कहा कि कानून व्यापक परामर्श के बाद लाया गया है, 38 बैठकें हुईं और 29 लाख सुझाव मिले।
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उन्होंने कहा कि “वक्फ बाय यूजर” को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, असल में कानून पारदर्शिता लाने की कोशिश है।
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मेहता ने उदाहरणों के ज़रिए समझाया कि वक्फ संपत्ति का नियमन अब स्पष्ट और संतुलित होगा।
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उन्होंने बताया कि जो संपत्तियां पहले से वक्फ के रूप में दर्ज हैं, वे सुरक्षित हैं, लेकिन विवादित संपत्तियों के लिए न्यायिक प्रक्रिया जरूरी है।
🔴 CJI की टिप्पणियाँ
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CJI ने कहा कि अनुच्छेद 26 धर्मनिरपेक्ष है और सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है।
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उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्ति और प्राचीन स्मारकों (ASI) के बीच संतुलन जरूरी है।
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उन्होंने बार-बार दोहराया कि अदालत सभी पक्षों को नहीं सुन सकती, इसलिए बिंदुवार तर्क और नोट्स मांगे गए हैं।
🔍 क्या है आगे का रास्ता?
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सभी याचिकाओं को समेकित रूप से सुनने के पक्ष में है और जल्दी ही यह तय किया जाएगा कि केस को हाईकोर्ट भेजा जाए या सुप्रीम कोर्ट में ही निस्तारित किया जाए।
विशेष रिपोर्ट: यह मामला न केवल धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि देश की लाखों करोड़ की वक्फ संपत्तियों के प्रशासन पर भी सीधा असर डाल सकता है।